Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.१३)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रम् स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्।।१९।।

आपको मैं आदि, मध्य और अन्त से रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओंवाले, चन्द्र और सूर्यरूप नेत्रोंवाले, प्रज्वलित अग्नि के समान मुखों वाले और अपने तेज से संसार को संतप्त करते हुए देख रहा हूँ ।

ॐ तत्सत् !

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