Wednesday, 10 May 2017

गीता प्रबोधनी - तेरहवाँ अध्याय (पोस्ट.०९)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च।।१४।।

वे (परमात्मा) सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित हैं और सम्पूर्ण इन्द्रियोंके विषयोंको प्रकाशित करनेवाले हैं आसक्तिरहित हैं और सम्पूर्ण संसारका भरणपोषण करनेवाले हैं तथा गुणोंसे रहित हैं और सम्पूर्ण गुणोंके भोक्ता हैं।

व्याख्या—

एक परमात्माके सिवाय और किसीकी भी सत्ता नहीं है ? हम जो कुछ भी कहते, सुनते, पढ़ते, सोचते हैं, वह परमात्मा से भिन्न नहीं है । सब से रहित भी वही है और सब के सहित भी वही है ।

इस प्रकरणमें ब्रह्मकी मुख्यता होने पर भी प्रस्तुत श्लोक में समग्र परमात्मा का ज्ञेय-तत्त्व के रूप में वर्णन हुआ है । इससे सिद्ध होता है कि समग्र की मुख्यता ज्ञान और भक्ति दोनों में है ।

ॐ तत्सत् !

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