॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सञ्जय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।।५०।।
अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।५१।।
सञ्जय बोले –
वासुदेव भगवान् ने अर्जुन से ऐसा कहकर फिर उसी प्रकार से अपना रूप (देवरूप) दिखाया और महात्मा श्रीकृष्ण ने पुनः सौम्यवपु (द्विभुजरूप) होकर इस भयभीत अर्जुन को आश्वासन दिया।
अर्जुन बोले –
हे जनार्दन ! आपके इस सौम्य मनुष्यरूप को देखकर मैं इस समय स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ ।
व्याख्या—
द्विभुज मनुष्यरूप (कृष्ण), चतुर्भुज (विष्णु) और सहस्रभुज (विराट्रूप)--तीनों एक ही समग्र भगवान् के रूप हैं ।
ॐ तत्सत् !
सञ्जय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।।५०।।
अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।५१।।
सञ्जय बोले –
वासुदेव भगवान् ने अर्जुन से ऐसा कहकर फिर उसी प्रकार से अपना रूप (देवरूप) दिखाया और महात्मा श्रीकृष्ण ने पुनः सौम्यवपु (द्विभुजरूप) होकर इस भयभीत अर्जुन को आश्वासन दिया।
अर्जुन बोले –
हे जनार्दन ! आपके इस सौम्य मनुष्यरूप को देखकर मैं इस समय स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ ।
व्याख्या—
द्विभुज मनुष्यरूप (कृष्ण), चतुर्भुज (विष्णु) और सहस्रभुज (विराट्रूप)--तीनों एक ही समग्र भगवान् के रूप हैं ।
ॐ तत्सत् !
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