॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।३२।।
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।३३।।
श्रीभगवान् बोले –
मैं सम्पूर्ण लोकों का क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्ष में जो योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे (युद्ध किये) बिना भी नहीं रहेंगे ।
इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो । ये सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं । हे सव्यसाचिन् अर्थात् दोनों हाथों से वाण चलाने वाले अर्जुन ! तुम इनको मारने में निमित्तमात्र बन जाओ।
व्याख्या—
निमित्तमात्र बनने का तात्पर्य यह नहीं है कि नाममात्र के लिये कर्म करो, प्रत्युत इसका तात्पर्य है कि अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति लगाओ, पर अपने को कारण मत मानो अर्थात् अपने उद्योग में कमी भी मत रखो और अपनेमें अभिमान भी मत करो । भगवान् ने अपनी ओर से हम पर कृपा करने में कोई कमी नहीं रखी है । हमें तो निमित्तमात्र बनना है । अर्जुन के सामने तो युद्ध था, इसलिये भगवान् उनसे कहते हैं कि तुम निमित्तमात्र बनकर युद्ध करो, तुम्हारी विजय होगी । इसी तरह हमारे सामने संसार है, इसलिये हम भी निमित्तमात्र बनकर साधन करें तो संसार पर हमारी विजय हो जायगी ।
ॐ तत्सत् !
श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।३२।।
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।३३।।
श्रीभगवान् बोले –
मैं सम्पूर्ण लोकों का क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्ष में जो योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे (युद्ध किये) बिना भी नहीं रहेंगे ।
इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो । ये सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं । हे सव्यसाचिन् अर्थात् दोनों हाथों से वाण चलाने वाले अर्जुन ! तुम इनको मारने में निमित्तमात्र बन जाओ।
व्याख्या—
निमित्तमात्र बनने का तात्पर्य यह नहीं है कि नाममात्र के लिये कर्म करो, प्रत्युत इसका तात्पर्य है कि अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति लगाओ, पर अपने को कारण मत मानो अर्थात् अपने उद्योग में कमी भी मत रखो और अपनेमें अभिमान भी मत करो । भगवान् ने अपनी ओर से हम पर कृपा करने में कोई कमी नहीं रखी है । हमें तो निमित्तमात्र बनना है । अर्जुन के सामने तो युद्ध था, इसलिये भगवान् उनसे कहते हैं कि तुम निमित्तमात्र बनकर युद्ध करो, तुम्हारी विजय होगी । इसी तरह हमारे सामने संसार है, इसलिये हम भी निमित्तमात्र बनकर साधन करें तो संसार पर हमारी विजय हो जायगी ।
ॐ तत्सत् !
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