॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।१।।
श्रीभगवान् बोले –
सम्पूर्ण ज्ञानों में उत्तम और श्रेष्ठ ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब-के-सब मुनिलोग इस संसार से मुक्त होकर परमसिद्धि को प्राप्त हो गये हैं ।
व्याख्या—
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के विभाग का ज्ञान सम्पूर्ण लौकिक-पारमार्थिक ज्ञानों से उत्तम तथा सर्वोत्कृष्ट है । यह ज्ञान परमात्मतत्त्व की प्राप्ति का निश्चित उपाय है, इसलिये इस ज्ञानको प्राप्त करनेवाले सब-के-सब साधक परमात्मतत्त्वको प्राप्त हो जाते अर्थात् मुक्त हो जाते हैं । मुक्त होनेपर क्रिया (परिश्रम) तथा पदार्थ (पराश्रय)- का अत्यन्त अभाव हो जाता है और एक चिन्मय सत्ता (विश्राम)- के सिवाय कोई जड़ वस्तु रहती ही नहीं, जो वास्तवमें है ।
ॐ तत्सत् !
श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।१।।
श्रीभगवान् बोले –
सम्पूर्ण ज्ञानों में उत्तम और श्रेष्ठ ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब-के-सब मुनिलोग इस संसार से मुक्त होकर परमसिद्धि को प्राप्त हो गये हैं ।
व्याख्या—
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के विभाग का ज्ञान सम्पूर्ण लौकिक-पारमार्थिक ज्ञानों से उत्तम तथा सर्वोत्कृष्ट है । यह ज्ञान परमात्मतत्त्व की प्राप्ति का निश्चित उपाय है, इसलिये इस ज्ञानको प्राप्त करनेवाले सब-के-सब साधक परमात्मतत्त्वको प्राप्त हो जाते अर्थात् मुक्त हो जाते हैं । मुक्त होनेपर क्रिया (परिश्रम) तथा पदार्थ (पराश्रय)- का अत्यन्त अभाव हो जाता है और एक चिन्मय सत्ता (विश्राम)- के सिवाय कोई जड़ वस्तु रहती ही नहीं, जो वास्तवमें है ।
ॐ तत्सत् !
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