॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।२५।।
दूसरे मनुष्य इस प्रकार (ध्यानयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, आदि साधनोंको) नहीं जानते, केवल (जीवन्मुक्त महापुरुषों से) सुनकर उपासना करते हैं, ऐसे वे सुनने के परायण मनुष्य भी मृत्यु को तर जाते हैं।
व्याख्या—
जिन मनुष्योंमें शास्त्रों को तथा उनमें वर्णित साधनोंको समझनेकी योग्यता नहीं है, जिनका विवेक कमजोर है, पर जिनके भीतर मृत्यु से तरने (मुक्ति)-की उत्कट अभिलाषा है, ऐसे मनुष्य भी जीवनमुक्त सन्त-महात्माओं की आज्ञा का पालन करके मृत्यु को तर जाते हैं अर्थात् तत्त्वज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं ।
ॐ तत्सत् !
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।२५।।
दूसरे मनुष्य इस प्रकार (ध्यानयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, आदि साधनोंको) नहीं जानते, केवल (जीवन्मुक्त महापुरुषों से) सुनकर उपासना करते हैं, ऐसे वे सुनने के परायण मनुष्य भी मृत्यु को तर जाते हैं।
व्याख्या—
जिन मनुष्योंमें शास्त्रों को तथा उनमें वर्णित साधनोंको समझनेकी योग्यता नहीं है, जिनका विवेक कमजोर है, पर जिनके भीतर मृत्यु से तरने (मुक्ति)-की उत्कट अभिलाषा है, ऐसे मनुष्य भी जीवनमुक्त सन्त-महात्माओं की आज्ञा का पालन करके मृत्यु को तर जाते हैं अर्थात् तत्त्वज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं ।
ॐ तत्सत् !
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