Saturday, 13 May 2017

गीता प्रबोधनी पन्द्रहवाँ अध्याय (पोस्ट.११)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥१२॥

सूर्य को प्राप्त हुआ जो तेज सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है और जो तेज चन्द्रमा में है तथा जो तेज अग्नि में है, उस तेज को मेरा ही जान।

व्याख्या-
प्रभाव और महत्व की तरफ आकर्षित होना जीव का स्वभाव है। प्राकृत पदार्थों के सम्बन्ध से जीव प्राकृत पदार्थों के प्रभाव और महत्व से प्रभावित हो जाता है। अतः हीवपर पड़े प्राकृत पदार्थों के प्रभाव और महत्व को हटाने के लिये भगवान का यह रहस्य प्रकट करते हैं कि उन पदार्थों में जो प्रभाव और महत्व देखने में आता है, वह वस्तुतः (मूल में) मेरा ही है, उनका नहीं। सर्वोपरि प्रभावशाली तथा महत्वशाली मैं ही हूँ। मेरे ही प्रकाश से सब प्रकाशित हो रहे हैं।

ॐ तत्सत् !

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