॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत।।११।।
जब इस मनुष्यशरीर में सब द्वारों (इन्द्रियों और अन्तःकरण) में प्रकाश (स्वच्छता) और ज्ञान (विवेक) प्रकट हो जाता है, तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है।
व्याख्या—
‘प्रकाश’ और ‘ज्ञान’-दोनोंमें भेद है । ‘प्रकाश’ का अर्थ है-इन्द्रियों और अन्तःकरणमें जागृति अर्थात् होनेवाला मनोराज्य तथा तमोगुणसे होनेवाले निद्रा, आलस्य और प्रमाद न होकर स्वच्छता होना । ‘ज्ञान’ का अर्थ है-विवेक अर्थात् सत्-असत्, कर्तव्य-अकर्तव्य आदिका ज्ञान होना । प्रकाश और ज्ञान आनेपर साधक उनको अपना गुण मानकर अभिमान न करे, प्रत्युत उनको सत्त्वगुण का ही कार्य माने और विशेषरूप से भजन-ध्यान आदि में लग जाय । कारण कि ऐसे समय में किये गये साधन से अधिक लाभ हो सकता है ।
ॐ तत्सत् !
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत।।११।।
जब इस मनुष्यशरीर में सब द्वारों (इन्द्रियों और अन्तःकरण) में प्रकाश (स्वच्छता) और ज्ञान (विवेक) प्रकट हो जाता है, तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है।
व्याख्या—
‘प्रकाश’ और ‘ज्ञान’-दोनोंमें भेद है । ‘प्रकाश’ का अर्थ है-इन्द्रियों और अन्तःकरणमें जागृति अर्थात् होनेवाला मनोराज्य तथा तमोगुणसे होनेवाले निद्रा, आलस्य और प्रमाद न होकर स्वच्छता होना । ‘ज्ञान’ का अर्थ है-विवेक अर्थात् सत्-असत्, कर्तव्य-अकर्तव्य आदिका ज्ञान होना । प्रकाश और ज्ञान आनेपर साधक उनको अपना गुण मानकर अभिमान न करे, प्रत्युत उनको सत्त्वगुण का ही कार्य माने और विशेषरूप से भजन-ध्यान आदि में लग जाय । कारण कि ऐसे समय में किये गये साधन से अधिक लाभ हो सकता है ।
ॐ तत्सत् !
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