Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.२३)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योधवीरान्।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।।३४।।

द्रोण, भीष्म, जयद्रथ और कर्ण तथा अन्य सभी मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को तुम मारो । तुम व्यथा मत करो और युद्ध करो । युद्ध में तुम निःसन्देह वैरियों को जीतोगे ।

व्याख्या—

भगवान्‌ अर्जुनसे कहते हैं कि ये सभी शूरवीर शत्रु मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं । इससे साधक को यह समझना चाहिये कि राग-द्वेष, काम-क्रोध आदि शत्रु भी पहले से ही मारे हुए हैं अर्थात्‌ सत्तारहित हैं । इनको साधक ने ही सत्ता और महत्ता देकर अपने में स्वीकार किया है ।

ॐ तत्सत् !

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