Monday, 8 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.३२)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त- मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।।४६।।

मैं आपको वैसे ही किरीट(मुकुट)-धारी, गदाधारी और हाथ में चक्र लिये हुए अर्थात् चतुर्भुजरूप से देखना चाहता हूँ । इसलिये हे सहस्रबाहो ! विश्वमूर्ते ! आप उसी चतुर्भुजरूप से हो जाइये ।

ॐ तत्सत् !

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