Wednesday, 10 May 2017

गीता प्रबोधनी - चौदहवाँ अध्याय (पोस्ट.१०)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।१०।।

हे भरतवंशोद्भव ! अर्जुन रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण, वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है ।

व्याख्या—

दो गुणों को दबाकर एक गुण बढ़ता है, बढ़ा हुआ गुण मनुष्यपर विजय करता है और विजय करके मनुष्य को बाँध देता है । जो गुण बढ़ता है, उसकी मुख्यता हो जाती है और दूसरे गुणों की गौणता हो जाती है । यह गुणों का स्वभाव है ।

ॐ तत्सत् !

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