॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।।८।।
हे भरतवंशी अर्जुन ! सम्पूर्ण देहधारियों को मोहित करनेवाले तमोगुण को तुम अज्ञान से उत्पन्न होनेवाला समझो । वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देहधारियों को बाँधता है ।
व्याख्या—
सत्त्वगुण और रजोगुण तो संग (सुखासक्ति)--से बाँधते हैं, पर तमोगुण स्वरूप से ही बाँधने वाला है । ये तीनों गुण प्रकृति के कार्य हैं और जीव स्वयं प्रकृति और उसके कार्य गुणों से सर्वथा रहित है । परन्तु गुणों के साथ सम्बन्ध जोड़ने के कारण स्वयं गुणातीत होते हुए भी गुणों से बँध जाता है ।
ॐ तत्सत् !
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।।८।।
हे भरतवंशी अर्जुन ! सम्पूर्ण देहधारियों को मोहित करनेवाले तमोगुण को तुम अज्ञान से उत्पन्न होनेवाला समझो । वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देहधारियों को बाँधता है ।
व्याख्या—
सत्त्वगुण और रजोगुण तो संग (सुखासक्ति)--से बाँधते हैं, पर तमोगुण स्वरूप से ही बाँधने वाला है । ये तीनों गुण प्रकृति के कार्य हैं और जीव स्वयं प्रकृति और उसके कार्य गुणों से सर्वथा रहित है । परन्तु गुणों के साथ सम्बन्ध जोड़ने के कारण स्वयं गुणातीत होते हुए भी गुणों से बँध जाता है ।
ॐ तत्सत् !
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