Wednesday, 10 May 2017

गीता प्रबोधनी - तेरहवाँ अध्याय (पोस्ट.१८)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना।
अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे।।२४।।

कई मनुष्य ध्यानयोग के द्वारा, कई सांख्ययोग के द्वारा और कई कर्मयोग के द्वारा अपनेआप से अपनेआप में परमात्मतत्त्व का अनुभव करते हैं ।

व्याख्या—

जैसे पूर्वश्लोक में विवेक के महत्त्व को मुक्ति का उपाय बताया, ऐसे ही यहाँ ध्यानयोग आदि अन्य मुक्ति के उपाय बताते हैं । गीता में ध्यानयोग से (६ । २८), सांख्ययोग से (२ । १५) और कर्मयोग से (२ । ७१)-तीनों परमात्मप्राप्ति की बात कही गयी है । ये तीनों परमात्मप्राप्ति के स्वतन्त्र साधन हैं ।

ॐ तत्सत् !

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