॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ॥१३॥
मैं ही पृथ्वी में प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति से समस्त प्राणियों को धारण करता हूँ और (मैं ही) रसस्वरूप चन्द्रमा होकर समस्त ओषधियों (वनस्पतियों)-को पुष्ट करता हूँ।
व्याख्या-
पृथ्वी, चन्द्रमा आदि सब भगवान की अपरा प्रकृति है। अतः इसके उत्पादक, धारक, पालक, संरक्षक, प्रकाशक आदि सब कुछ भगवान ही हैं। भगवान की शक्ति होने से अपरा प्रकृति भगवान से अभिन्न है।
ॐ तत्सत् !
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