॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सञ्जय उवाच
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य।।३५।।
अर्जुन उवाच
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।३६।।
सञ्जय बोले –
भगवान् केशव का यह वचन सुनकर (भय से) कम्पित हुए किरीटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर नमस्कार करके और अत्यन्त भयभीत होते हुए भी फिर प्रणाम करके गद्गद वाणी से भगवान् कृष्ण से बोले।
अर्जुन बोले –
हे अन्तर्यामी भगवन् आपके नाम, गुण, लीला का कीर्तन करने से यह सम्पूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग(प्रेम) को प्राप्त हो रहा है। आपके नाम, गुण आदि के कीर्तनसे भयभीत होकर राक्षसलोग दसों दिशाओं में भागते हुए जा रहे हैं और सम्पूर्ण सिद्धगण आपको नमस्कार कर रहे हैं । यह सब होना उचित ही है।
ॐ तत्सत् !
सञ्जय उवाच
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य।।३५।।
अर्जुन उवाच
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।३६।।
सञ्जय बोले –
भगवान् केशव का यह वचन सुनकर (भय से) कम्पित हुए किरीटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर नमस्कार करके और अत्यन्त भयभीत होते हुए भी फिर प्रणाम करके गद्गद वाणी से भगवान् कृष्ण से बोले।
अर्जुन बोले –
हे अन्तर्यामी भगवन् आपके नाम, गुण, लीला का कीर्तन करने से यह सम्पूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग(प्रेम) को प्राप्त हो रहा है। आपके नाम, गुण आदि के कीर्तनसे भयभीत होकर राक्षसलोग दसों दिशाओं में भागते हुए जा रहे हैं और सम्पूर्ण सिद्धगण आपको नमस्कार कर रहे हैं । यह सब होना उचित ही है।
ॐ तत्सत् !
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