Monday, 8 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.३१)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।४५।।

जिसको पहले कभी नहीं देखा, उस रूपको देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और साथ-ही-साथ भय से मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने उसी देवरूप (शान्त विष्णुरूप) को दिखाइये । हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप प्रसन्न होइये ।

ॐ तत्सत् !

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