॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।४५।।
जिसको पहले कभी नहीं देखा, उस रूपको देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और साथ-ही-साथ भय से मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने उसी देवरूप (शान्त विष्णुरूप) को दिखाइये । हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप प्रसन्न होइये ।
ॐ तत्सत् !
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।४५।।
जिसको पहले कभी नहीं देखा, उस रूपको देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और साथ-ही-साथ भय से मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने उसी देवरूप (शान्त विष्णुरूप) को दिखाइये । हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप प्रसन्न होइये ।
ॐ तत्सत् !
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