॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः।।५।।
मूल प्रकृति, समष्टि बुद्धि (महत्तत्त्व), समष्टि अहंकार, पाँच महाभूत और दस इन्द्रियाँ, एक मन तथा पाँचों इन्द्रियोंके पाँच विषय ( -- यह चौबीस तत्त्वोंवाला क्षेत्र है)।
व्याख्या—
पाँच महाभूत, एक अहंकार और एक बुद्धि-ये सात ‘प्रकृति-विकृति’ हैं, मूल प्रकृति केवल ‘प्रकृति’ है और दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय-ये सोलह केवल ‘विकृति’ हैं । इस तरह चौबीस तत्त्वों के समुदाय का नाम ‘क्षेत्र’ है । इसीका एक तुच्छ अंश यह मनुष्यशरीर है ।
ॐ तत्सत् !
महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः।।५।।
मूल प्रकृति, समष्टि बुद्धि (महत्तत्त्व), समष्टि अहंकार, पाँच महाभूत और दस इन्द्रियाँ, एक मन तथा पाँचों इन्द्रियोंके पाँच विषय ( -- यह चौबीस तत्त्वोंवाला क्षेत्र है)।
व्याख्या—
पाँच महाभूत, एक अहंकार और एक बुद्धि-ये सात ‘प्रकृति-विकृति’ हैं, मूल प्रकृति केवल ‘प्रकृति’ है और दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय-ये सोलह केवल ‘विकृति’ हैं । इस तरह चौबीस तत्त्वों के समुदाय का नाम ‘क्षेत्र’ है । इसीका एक तुच्छ अंश यह मनुष्यशरीर है ।
ॐ तत्सत् !
No comments:
Post a Comment