Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.२०)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।२८।।
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।२९।।

जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के सम्मुख दौड़ते हैं, ऐसे ही वे संसार के महान् शूरवीर आपके सब तरफ से देदीप्यमान मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।
जैसे पतंगे मोहवश अपना नाश करनेके लिये बड़े वेगसे दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्निमें प्रविष्ट होते हैं, ऐसे ही ये सब लोग भी (मोहवश) अपना नाश करने के लिये ही बड़े वेगसे दौड़ते हुए आपके मुखों में प्रविष्ट हो रहे हैं।

ॐ तत्सत् !

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