॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्रीभगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।५।।
श्रीभगवान् बोले –
हे पृथानन्दन ! अब मेरे अनेक तरह के, अनेक वर्णों और आकृतियों वाले सैकड़ों हजारों अलौकिक रूपों को तू देख।
व्याख्या—
उपदेश दो प्रकार से दिया जाता है- कहकर और दिखाकर । पहले दसवें अध्याय में भगवान् ने अपने समग्ररूप का वर्णन किया कि मैं अपने एक अंश से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके स्थित हूँ । अब इस अध्याय में भगवान् अर्जुन के द्वारा प्रार्थना करने पर उसी रूप को प्रत्यक्ष दिखाते हैं ।
ॐ तत्सत् !
श्रीभगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।५।।
श्रीभगवान् बोले –
हे पृथानन्दन ! अब मेरे अनेक तरह के, अनेक वर्णों और आकृतियों वाले सैकड़ों हजारों अलौकिक रूपों को तू देख।
व्याख्या—
उपदेश दो प्रकार से दिया जाता है- कहकर और दिखाकर । पहले दसवें अध्याय में भगवान् ने अपने समग्ररूप का वर्णन किया कि मैं अपने एक अंश से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके स्थित हूँ । अब इस अध्याय में भगवान् अर्जुन के द्वारा प्रार्थना करने पर उसी रूप को प्रत्यक्ष दिखाते हैं ।
ॐ तत्सत् !
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