Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.०२)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


श्रीभगवानुवाच

एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम।।२।।
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।४।।

हे पुरुषोत्तम ! आप अपनेआप को जैसा कहते हैं, यह वास्तव में ऐसा ही है। हे परमेश्वर ! आपके ईश्वरसम्बन्धी रूप को मैं देखना चाहता हूँ ।
हे प्रभो मेरे द्वारा आपका वह परम ऐश्वर रूप देखा जा सकता है -- ऐसा अगर आप मानते हैं तो हे योगेश्वर आप अपने उस अविनाशी स्वरूप को मुझे दिखा दीजिये।

ॐ तत्सत् !

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