Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.०१)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अर्जुन उवाच

मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम् ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ।।१।।
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।२।।

अर्जुन बोले –
केवल मुझपर कृपा करने के लिये ही आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म-विषयक वचन कहे, उससे मेरा यह मोह नष्ट हो गया है।
हे कमलनयन ! सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय मैंने विस्तारपूर्वक आप से ही सुने हैं और आपका अविनाशी माहात्म्य भी सुना है।

ॐ तत्सत् !

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