॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत।।१४।।
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ
मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्।।१५।।
भगवान् के विश्वरूप को देखकर अर्जुन बहुत चकित हुए और आश्चर्य के कारण उनका शरीर रोमाञ्चित हो गया। वे हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करके बोले।
अर्जुन बोले –
हे देव ! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेषविशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्माजी को, शङ्करजी को, सम्पूर्ण ऋषियों को और सम्पूर्ण दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ ।
ॐ तत्सत् !
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत।।१४।।
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ
मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्।।१५।।
भगवान् के विश्वरूप को देखकर अर्जुन बहुत चकित हुए और आश्चर्य के कारण उनका शरीर रोमाञ्चित हो गया। वे हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करके बोले।
अर्जुन बोले –
हे देव ! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेषविशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्माजी को, शङ्करजी को, सम्पूर्ण ऋषियों को और सम्पूर्ण दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ ।
ॐ तत्सत् !
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