Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.०८)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा।।१३।।

उस समय अर्जुन ने देवों के देव भगवान् के शरीर में एक जगह स्थित अनेक प्रकार के विभागों में विभक्त सम्पूर्ण जगत् को देखा।

व्याख्या—

अर्जुनने भगवान्‌ के शरीरमें एक जगह स्थित जरायुज, अण्डज, उद्भिज्ज, स्वेदज; स्थावर-जंगम; नभचर-जलचर-थलचर; चौरासी लाख योनियाँ; चौदह भुवन आदि अनेक विभागोंमें विभक्त जगत्‌को देखा । जगत्‌ भले ही अनन्त हो, पर है वह भगवान् के एक अंशमें ही (गीता १० । ४२) । अर्जुन भगवान्‌ के शरीर में जहाँ भी दृष्टि डालते हैं, वहीं उन्हें अनन्त जगत्‌ दीखता है ।

ॐ तत्सत् !

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