Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.०६)

ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।।८।।

मैं संसारमात्र का प्रभव (मूलकारण) हूँ, और मेरेसे ही सारा संसार प्रवृत्त हो रहा है अर्थात् चेष्टा कर रहा है -- ऐसा मानकर मुझ में ही श्रद्धा-प्रेम रखते हुए बुद्धिमान् भक्त मेरा ही भजन करते हैं -- सब प्रकारसे मेरे ही शरण होते हैं ।

व्याख्या—

पदार्थ और व्यक्ति भी भगवान्‌से ही होते हैं (अहं सर्वस्य प्रभवः) और क्रियाएँ भी भगवान्‌ से ही होती हैं (मत्त: सर्व प्रवर्तते) । परन्तु जीव पदार्थों, व्यक्तियों और क्रियाओंसे सम्बन्ध जोड़कर, उनको अपना मानकर, उनक भोक्ता और कर्ता बनकर बनधनमें पड़ जाता है । जो मनुष्य पदार्थों, व्यक्तियों और क्रियाओंसे सम्बन्ध न जोड़कर भगवान्‌के महत्त्व (प्रभाव)-को मान लेते हैं, वे संसारमें न फँसकर भगवान्‌के ही भजनमें लग जाते हैं ।

ॐ तत्सत् !

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