Friday, 5 May 2017

गीता प्रबोधनी - नवाँ अध्याय (पोस्ट.०९)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्॥ ११॥

मूर्खलोग मेरे सम्पूर्ण प्राणियोंके महान् ईश्वररूप श्रेष्ठभावको न जानते हुए मुझे मनुष्यशरीरके आश्रित मानकर अर्थात् साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं।

व्याख्या—

भगवान्‌से बड़ा कोई ईश्वर नहीं है । वे सर्वोपरि हैं । परन्तु अज्ञानी मनुष्य उन्हें स्वरूपसे नहीं जानते । वे अलौकिक भगवान्‌को भी अपनी तरह लौकिक मानकर उनकी अवहेलना करते हैं और नाशवान्‌ शरीर-संसारकी ही सत्ता मानकर भोग तथा संग्रहमें लगे रहते हैं ।

ॐ तत्सत् !

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