Thursday, 4 May 2017

गीता प्रबोधनी - आठवाँ अध्याय (पोस्ट.०९)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्।
नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:॥ १५॥

महात्मा लोग मुझे प्राप्त करके दु:खालय अर्थात् दु:खोंके घर और अशाश्वत अर्थात् निरन्तर बदलने वाले पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते; क्योंकि वे परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् उनको परम प्रेम की प्राप्ति हो गयी है।

व्याख्या—

भोग और संग्रहमें लगे हुए सकाम मनुष्यके लिये तो यह संसार दुःखालय है, पर सेवा और भगवद्भजन में लगे हुए निष्काम मनुष्य के लिये यह संसार भगवत्स्वरूप है ।

परमात्मतत्त्व की प्राप्ति एक बार होती है और सदा के लिये होती है, इसलिये परमात्मा को प्राप्त हुए मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता, वह सदा-सदा के लिये जन्म-मरण से छूट जाता है । यदि उसमें भक्ति के संस्कार हों तो वह जन्म-मरण से मुक्ति के साथ-साथ प्रतिक्षण वर्धमान परम प्रेम को भी प्राप्र कर लेता है ।

ॐ तत्सत् !

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