Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.१७)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।२३।।
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः।।२४।।

रुद्रोंमें शंकर और यक्षराक्षसोंमें कुबेर मैं हूँ, वसुओंमें पावक (अग्नि) और शिखरवाले पर्वतों में मेरु मैं हूँ।
हे पार्थ ! पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मेरा स्वरूप समझो । सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ।

ॐ तत्सत् !

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