Thursday, 4 May 2017

गीता प्रबोधिनी आठवाँ अध्याय (पोस्ट.१०)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


आब्रह्राभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥१६॥

हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावर्ती वाले हैं अर्थात वहाँ जाने पर पुनः लौटकर संसार में आना पड़ता है; परन्तु हे कौन्तेय! मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता।

व्याख्या- भोग और संग्रह की आसक्ति से ही पुनर्जन्म होता है। इसलिये जिस मनुष्य में भोग और संग्रह की आसक्ति है, वह यदि पुण्यकर्मों के प्रभाव से ब्रह्मलोक तक चला जाय तो भी उसे लौटकर जन्म-मरण में अर्थात दुःखालय संसार में आना ही पड़ता है। ब्रह्मलोक तक सभी लोकों की प्राप्ति का फल है। जब तक प्रत्येक कर्म का आरम्भ और अन्त होता है तो फिर उसका फल अविनाशी कैसे होगा? परन्तु परमात्म की प्राप्ति कर्मों का फल नहीं है। अतः परमात्मा की प्राप्ति होने पर फिर वहाँ से लौटकर दुःखालय संसार में नहीं आना पड़ता।
ॐ तत्सत् !

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