Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.१०)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अर्जुन उवाच

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्।।१२।। आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे।।१३।।

अर्जुन बोले –

परम ब्रह्म, परम धाम और महान् पवित्र आप ही हैं। आप शाश्वत, दिव्य पुरुष, आदिदेव, अजन्मा और विभु (व्यापक) हैं -- ऐसा सब के सब ऋषि, देवर्षि नारद, असित, देवल तथा व्यास कहते हैं और स्वयं आप भी मेरे प्रति कहते हैं।

व्याख्या—

निर्गुण-निराकार के लिये ‘परं ब्रह्म’, सगुण-निराकारके लिये ‘परं धाम’ और सगुण-साकार के लिये ‘पवित्रं परमं भवान्‌’ पदों का प्रयोग करके अर्जुन भगवान्‌ से मानो यह कहते हैं कि समग्र परमात्मा आप ही हैं ।

ॐ तत्सत् !

No comments:

Post a Comment