॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा-
यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-
मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥ २०॥
तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम अनुष्ठानको करनेवाले और सोमरसको पीनेवाले जो पापरहित मनुष्य यज्ञोंके द्वारा (इन्द्ररूपसे) मेरा पूजन करके स्वर्गप्राप्तिकी प्रार्थना करते हैं, वे (पुण्योंके फलस्वरूप) पवित्र इन्द्रलोकको प्राप्त करके वहाँ स्वर्गके देवताओंके दिव्य भोगोंको भोगते हैं।
व्याख्या—
यहाँ ऐसे मनुष्योंका वर्णन है, जिनके भीतर संसारकी सत्ता और महत्ता बैठी हुई है और जो भगवान्की अविधिपूर्वक उपासन करते हैं (गीता ९ । २३ ) । ऐसे मनुष्योंकी उपासनाका फल नाशवान् ही होता है (गीता ७ । २३) ।
ॐ तत्सत् !
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा-
यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-
मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥ २०॥
तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम अनुष्ठानको करनेवाले और सोमरसको पीनेवाले जो पापरहित मनुष्य यज्ञोंके द्वारा (इन्द्ररूपसे) मेरा पूजन करके स्वर्गप्राप्तिकी प्रार्थना करते हैं, वे (पुण्योंके फलस्वरूप) पवित्र इन्द्रलोकको प्राप्त करके वहाँ स्वर्गके देवताओंके दिव्य भोगोंको भोगते हैं।
व्याख्या—
यहाँ ऐसे मनुष्योंका वर्णन है, जिनके भीतर संसारकी सत्ता और महत्ता बैठी हुई है और जो भगवान्की अविधिपूर्वक उपासन करते हैं (गीता ९ । २३ ) । ऐसे मनुष्योंकी उपासनाका फल नाशवान् ही होता है (गीता ७ । २३) ।
ॐ तत्सत् !
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