Thursday, 4 May 2017

गीता प्रबोधनी - आठवाँ अध्याय (पोस्ट.०१)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


अर्जुन उवाच

किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥ १॥
अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि:॥ २॥

श्रीभगवानुवाच

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्ग: कर्मसञ्ज्ञित:॥ ३॥

अर्जुन बोले—
हे पुरुषोत्तम ! वह ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत किसको कहा गया है ? और अधिदैव किसको कहा जाता है ? यहाँ अधियज्ञ कौन है ? और वह इस देहमें कैसे है ? हे मधुसूदन ! वशीभूत अन्त:करणवाले मनुष्योंके द्वारा अन्तकालमें आप कैसे जाननेमें आते हैं ?

श्रीभगवान् बोले—

परम अक्षर ब्रह्म है और परा प्रकृति (जीव)-को अध्यात्म कहते हैं। प्राणियोंकी सत्ताको प्रकट करनेवाला त्याग कर्म कहा जाता है।

ॐ तत्सत् !

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