Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.०८)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।१०।।

उन नित्यनिरन्तर मुझ में लगे हुए और प्रेमपूर्वक मेरा भजन करनेवाले भक्तों को मैं वह बुद्धियोग देता हूँ, जिससे उनको मेरी प्राप्ति हो जाती है।

व्याख्या—

भगन्निष्ठ भक्त भगवान्‌ को छोड़कर न तो समता चाहते हैं, न तत्त्वज्ञान चाहते हैं, न मोक्ष चाहते हैं तथा न और ही कुछ चाहते हैं । उनका तो एक ही काम है-नित्य-निरन्तर भगवान्‌ में लगे रहना । इसलिये उन भक्तों की सारी जिम्मेदारी भगवान्‌ पर आ जाती है । उन भक्तों में कोई कमी न रह जाय, इस दृष्टिसे भगवान्‌ अपनी तरफ से उनको समता (कर्मयोग) और तत्त्वज्ञान (ज्ञानयोग)- दोनों दे देते हैं (गीता १० । ११) ।

ॐ तत्सत् !

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