Wednesday, 3 May 2017

गीता प्रबोधनी - सातवाँ अध्याय (पोस्ट.१२)

न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा:।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता:॥ १५॥

परन्तु माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा गया है, वे आसुर भाव का आश्रय लेने वाले और मनुष्यों में महान् नीच तथा पाप-कर्म करने वाले मूढ़ मनुष्य मेरे शरण नहीं होते।

व्याख्या—

यद्यपि भगवान्‌ ने सभी को अपनी शरणमें ले रखा है; परन्तु भोग तथा संग्रह की आसक्ति में रचे-पचे मनुष्य भगवान्‌ की शरण न लेकर संसार की शरण लेते हैं और परिणाम में दुःख पाते हैं |

ॐ तत्सत् !

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