एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा॥ ६॥
सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पन्न होनेमें अपरा और परा—इन दोनों प्रकृतियोंका संयोग ही कारण है—ऐसा तुम समझो। मैं सम्पूर्ण जगत् का प्रभव तथा प्रलय हूँ।
व्याख्या—
अनन्त ब्रह्माण्डमें स्थावर-जंगम, थलचर-जलचर-नभचर, जरायु-अण्डज-स्वेदज-उद्भिज, मनुष्य, देवता, गन्धर्व, पितर, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि जितने भी प्राणी देखने- सुनने-पढ़नेमें आते हैं, वे सब अपरा और परा-इन दोनोंके माने हुए संयोगसे ही उत्पन्न होते है । अपरा और पराका संयोग ही सम्पूर्ण संसारका बीज है ।
मैं सम्पूर्ण जगत्का प्रभव तथा प्रलय हूँ-इससे भगवान्का तात्पर्य है कि मैं ही सम्पूर्ण संसारको उत्पन्न करनेवाला हूँ और मैं ही उत्पन्न होनेवाला हूँ, मैं ही नाश करनेवाला हूँ और मैं ही नष्ट होनेवाला हूँ; क्योंकि मेरे सिवाय संसारका अन्य कोई भी कारण तथा कार्य नहीं है । मैं ही इसका निमित्त और उपादान कारण हूँ ।
भगवान् ही जगद्रूपसे प्रकट हुए हैं । यह जगत् भगवान्का आदि अवतार है-‘आद्यो$वतारः पुरुषः परस्य’ (श्रीमद्भा० २ । ६ । ४१) । आदि अवतार होनेसे जगत् नहीं है, केवल भगवान् ही हैं ।
ॐ तत्सत् !
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा॥ ६॥
सम्पूर्ण प्राणियोंके उत्पन्न होनेमें अपरा और परा—इन दोनों प्रकृतियोंका संयोग ही कारण है—ऐसा तुम समझो। मैं सम्पूर्ण जगत् का प्रभव तथा प्रलय हूँ।
व्याख्या—
अनन्त ब्रह्माण्डमें स्थावर-जंगम, थलचर-जलचर-नभचर, जरायु-अण्डज-स्वेदज-उद्भिज, मनुष्य, देवता, गन्धर्व, पितर, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि जितने भी प्राणी देखने- सुनने-पढ़नेमें आते हैं, वे सब अपरा और परा-इन दोनोंके माने हुए संयोगसे ही उत्पन्न होते है । अपरा और पराका संयोग ही सम्पूर्ण संसारका बीज है ।
मैं सम्पूर्ण जगत्का प्रभव तथा प्रलय हूँ-इससे भगवान्का तात्पर्य है कि मैं ही सम्पूर्ण संसारको उत्पन्न करनेवाला हूँ और मैं ही उत्पन्न होनेवाला हूँ, मैं ही नाश करनेवाला हूँ और मैं ही नष्ट होनेवाला हूँ; क्योंकि मेरे सिवाय संसारका अन्य कोई भी कारण तथा कार्य नहीं है । मैं ही इसका निमित्त और उपादान कारण हूँ ।
भगवान् ही जगद्रूपसे प्रकट हुए हैं । यह जगत् भगवान्का आदि अवतार है-‘आद्यो$वतारः पुरुषः परस्य’ (श्रीमद्भा० २ । ६ । ४१) । आदि अवतार होनेसे जगत् नहीं है, केवल भगवान् ही हैं ।
ॐ तत्सत् !
No comments:
Post a Comment