Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.२०)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।२९।।
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।३०।।
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।३१।।

नागोंमें अनन्त (शेषनाग) और जलजन्तुओंका अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरोंमें अर्यमा और,शासन करनेवालोंमें यमराज मैं हूँ।
दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों (ज्योतिषियों) में काल मैं हूँ । पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरुड मैं हूँ।
पवित्र करनेवालोंमें वायु और शास्त्रधारियों में राम मैं हूँ। जलजन्तुओं में मगर मैं हूँ । बहनेवाले स्रोतों में गङ्गाजी मैं हूँ।

ॐ तत्सत् !

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