॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्री भगवानुवाच
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।६।।
सात महर्षि और उनसे भी पूर्व में होनेवाले चार सनकादि तथा चौदह मनु -- ये सब के सब मेरे मन से पैदा हुए हैं और मेरे में भाव (श्रद्धाभक्ति) रखनेवाले हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है।
व्याख्या—
सात महर्षि, चार सनकादि तथा चौदह मनु-ये सब भगवान्के मनसे प्रकट होनेके कारण भगवान्से अभिन्न अर्थात् भगवत्स्वरूप हैं ।
ॐ तत्सत् !
श्री भगवानुवाच
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।६।।
सात महर्षि और उनसे भी पूर्व में होनेवाले चार सनकादि तथा चौदह मनु -- ये सब के सब मेरे मन से पैदा हुए हैं और मेरे में भाव (श्रद्धाभक्ति) रखनेवाले हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है।
व्याख्या—
सात महर्षि, चार सनकादि तथा चौदह मनु-ये सब भगवान्के मनसे प्रकट होनेके कारण भगवान्से अभिन्न अर्थात् भगवत्स्वरूप हैं ।
ॐ तत्सत् !
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