Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.०४)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

श्री भगवानुवाच

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।६।।

सात महर्षि और उनसे भी पूर्व में होनेवाले चार सनकादि तथा चौदह मनु -- ये सब के सब मेरे मन से पैदा हुए हैं और मेरे में भाव (श्रद्धाभक्ति) रखनेवाले हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है।

व्याख्या—

सात महर्षि, चार सनकादि तथा चौदह मनु-ये सब भगवान्‌के मनसे प्रकट होनेके कारण भगवान्‌से अभिन्न अर्थात्‌ भगवत्स्वरूप हैं ।

ॐ तत्सत् !

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