Wednesday, 3 May 2017

गीता प्रबोधनी - सातवाँ अध्याय (पोस्ट.०८)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥ 

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्॥ १०॥

हे पृथानन्दन! सम्पूर्ण प्राणियोंका अनादि बीज मुझे जान। बुद्धिमानोंमें बुद्धि और तेजस्वियोंमें तेज मैं हूँ।

व्याख्या—

बीज और प्राणी, बुद्धि और बुद्धिमान्‌, तेज और तेजस्वी-ये सब-के सब (कारण तथा कार्य ) एक भगवान्‌ ही हैं ।

अनन्त अलग-अलग ब्रह्माण्ड हैं और उनमें अनन्त अलग-अलग जीव हैं, पर उन सम्पूर्ण जीवोंका बीज एक ही परमात्मा हैं । एक ही परमात्मासे अनेक प्रकारके प्राणी उत्पन्न होते हैं । लौकि बीज तो वृक्ष उत्पन्न करके स्वयं नष्ट हो जाता है, पर अनन्त सृष्टियाँ उत्पन्न होनेपरभी परमात्मरूपी बीज ज्यों-का-त्यों रहता है (गीता ९ । १८ ) ।

ॐ तत्सत् !

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