॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता:।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥ १४॥
नित्य-निरन्तर मुझमें लगे हुए मनुष्य दृढ़व्रती होकर लगनपूर्वक साधन में लगे हुए और प्रेमपूर्वक कीर्तन करते हुए तथा मुझे नमस्कार करते हुए निरन्तर मेरी उपासना करते हैं।
व्याख्या—
भक्त जो कुछ कहता है, वह सब भगवान्का ही कीर्तन होता है । वह जो कुछ भी क्रिया करता है, वह सब भगवान्की ही सेवा होती है । उसकी सम्पूर्ण लौकिक और पारमार्थिक क्रियाएँ केवल भगवान्की प्रसन्नताके लिये ही होती हैं ।
ॐ तत्सत् !
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता:।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥ १४॥
नित्य-निरन्तर मुझमें लगे हुए मनुष्य दृढ़व्रती होकर लगनपूर्वक साधन में लगे हुए और प्रेमपूर्वक कीर्तन करते हुए तथा मुझे नमस्कार करते हुए निरन्तर मेरी उपासना करते हैं।
व्याख्या—
भक्त जो कुछ कहता है, वह सब भगवान्का ही कीर्तन होता है । वह जो कुछ भी क्रिया करता है, वह सब भगवान्की ही सेवा होती है । उसकी सम्पूर्ण लौकिक और पारमार्थिक क्रियाएँ केवल भगवान्की प्रसन्नताके लिये ही होती हैं ।
ॐ तत्सत् !
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