॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।२५।।
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।२६।।
महर्षियों में भृगु और वाणियों(शब्दों) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालों में हिमालय मैं हूँ।
सम्पूर्ण वृक्षों में पीपल, देवर्षियोंमें नारद,गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ।
ॐ तत्सत् !
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।२५।।
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।२६।।
महर्षियों में भृगु और वाणियों(शब्दों) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालों में हिमालय मैं हूँ।
सम्पूर्ण वृक्षों में पीपल, देवर्षियोंमें नारद,गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ।
ॐ तत्सत् !
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