Friday, 5 May 2017

गीता प्रबोधनी - नवाँ अध्याय (पोस्ट.१९)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

यान्ति देवव्रता देवान्पितॄन्यान्ति पितृव्रता:।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्॥ २५॥

(सकामभावसे) देवताओंका पूजन करनेवाले (शरीर छोडऩेपर) देवताओंको प्राप्त होते हैं। पितरोंका पूजन करनेवाले पितरोंको प्राप्त होते हैं। भूत-प्रेतोंका पूजन करनेवाले भूत-प्रेतोंको प्राप्त होते हैं। परन्तु मेरा पूजन करनेवाले मुझे ही प्राप्त होते हैं।

व्याख्या—

वास्तवमें सब कुछ भगवान्‌का ही रूप है । परन्तु जो भगवान्‌के सिवाय दूसरी कोई भी स्वतन्त्र सत्ता मानता है, उसका उद्धार नहीं होता । वह ऊँचे-से-ऊँचे लोकोंमें भी चला जाय तो भी उसे लौटकर संसारमें आना ही पड़ता है ।

ॐ तत्सत् !

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