॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्॥ २॥
यह (विज्ञानसहित ज्ञान अर्थात् समग्ररूप) सम्पूर्ण विद्याओंका राजा और सम्पूर्ण गोपनीयोंका राजा है। यह अति पवित्र तथा अति श्रेष्ठ है और इसका फल भी प्रत्यक्ष है। यह धर्ममय है, अविनाशी है और करनेमें बहुत सुगम है अर्थात् इसको प्राप्त करना बहुत सुगम है।
व्याख्या—
यह विज्ञानसहित ज्ञान करनेमें बहुत सुगम है; क्योंकि ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’ - इसे स्वीकारमात्र करना है । इसमें कोई परिश्रम अथवा अभ्यास नहीं है
ॐ तत्सत् !
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्॥ २॥
यह (विज्ञानसहित ज्ञान अर्थात् समग्ररूप) सम्पूर्ण विद्याओंका राजा और सम्पूर्ण गोपनीयोंका राजा है। यह अति पवित्र तथा अति श्रेष्ठ है और इसका फल भी प्रत्यक्ष है। यह धर्ममय है, अविनाशी है और करनेमें बहुत सुगम है अर्थात् इसको प्राप्त करना बहुत सुगम है।
व्याख्या—
यह विज्ञानसहित ज्ञान करनेमें बहुत सुगम है; क्योंकि ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’ - इसे स्वीकारमात्र करना है । इसमें कोई परिश्रम अथवा अभ्यास नहीं है
ॐ तत्सत् !
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