॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:॥ ५॥
जो मनुष्य अन्तकालमें भी मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़कर जाता है, वह मेरे स्वरूपको ही प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं है।
व्याख्या—
भगवान् ने मनुष्य पर विशेष कृपा करके उसे यह छूट दी है कि उसका जीवन कैसा ही रहा हो, यदि अन्तसमय में भी वह मुझे याद कर ले तो मैं उसका कल्याण कर दूँगा । कारण कि भगवान् ने अहैतुकी कृपासे जीव को अपना कल्याण करनेके लिये ही मनुष्य शरीर दिया है ।
वास्तव में सब समय अन्तसमय ही है; क्योंकि अन्तसमय किसी भी समय आ सकता है । ऐसा कोई क्षण नहीं है, जिस क्षण में अन्तसमय न आता हो । इसलिये मनुष्य को हर समय भगवान् को याद रखना चाहिये ।
ॐ तत्सत् !
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय:॥ ५॥
जो मनुष्य अन्तकालमें भी मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़कर जाता है, वह मेरे स्वरूपको ही प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं है।
व्याख्या—
भगवान् ने मनुष्य पर विशेष कृपा करके उसे यह छूट दी है कि उसका जीवन कैसा ही रहा हो, यदि अन्तसमय में भी वह मुझे याद कर ले तो मैं उसका कल्याण कर दूँगा । कारण कि भगवान् ने अहैतुकी कृपासे जीव को अपना कल्याण करनेके लिये ही मनुष्य शरीर दिया है ।
वास्तव में सब समय अन्तसमय ही है; क्योंकि अन्तसमय किसी भी समय आ सकता है । ऐसा कोई क्षण नहीं है, जिस क्षण में अन्तसमय न आता हो । इसलिये मनुष्य को हर समय भगवान् को याद रखना चाहिये ।
ॐ तत्सत् !
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