॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय:।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥ ३२॥
हे पृथानन्दन! जो भी पापयोनिवाले हों तथा जो भी स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र हों, वे भी सर्वथा मेरे शरण होकर नि:सन्देह परमगतिको प्राप्त हो जाते हैं।
व्याख्या—
पूर्वजन्मके पापीकी अपेक्षा भी वर्तमान जन्मका पापी विशेष दोषी होता है । इसलिये पहले वर्तमान जन्मके पापी (सदुराचारी)- की बात कहकर अब इस श्लोकमें ‘पापयोनयः’ पदसे पूर्वजन्मके पापीकी बात कहते हैं ।
जिसमें दूसरेका आश्रय नहीं हो, ऐसे अनन्य आश्रयको यहाँ ‘व्यपाश्रय’ अर्थात् विशेष आश्रय कहा गया है ।
ॐ तत्सत् !
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय:।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥ ३२॥
हे पृथानन्दन! जो भी पापयोनिवाले हों तथा जो भी स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र हों, वे भी सर्वथा मेरे शरण होकर नि:सन्देह परमगतिको प्राप्त हो जाते हैं।
व्याख्या—
पूर्वजन्मके पापीकी अपेक्षा भी वर्तमान जन्मका पापी विशेष दोषी होता है । इसलिये पहले वर्तमान जन्मके पापी (सदुराचारी)- की बात कहकर अब इस श्लोकमें ‘पापयोनयः’ पदसे पूर्वजन्मके पापीकी बात कहते हैं ।
जिसमें दूसरेका आश्रय नहीं हो, ऐसे अनन्य आश्रयको यहाँ ‘व्यपाश्रय’ अर्थात् विशेष आश्रय कहा गया है ।
ॐ तत्सत् !
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