॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं- क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना- गतागतं कामकामा लभन्ते॥ २१॥
वे उस विशाल स्वर्गलोकके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। इस प्रकार तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मका आश्रय लिये हुए भोगोंकी कामना करनेवाले मनुष्य आवागमनको प्राप्त होते हैं।
व्याख्या—
सकाम अनुष्ठान करनेवाले मनुष्य्के जब स्वर्गके प्रतिबन्धक पाप नष्ट हो जाते हैं, तब वे स्वर्गमें चले जाते हैं । स्वर्गका सुख भोगते-भोगते जब उनके स्वर्गके प्रापक पुण्य नष्ट हो जाते हैं, तब वे पुनः मृत्युलोकमें आ जाते हैं । इस प्रकार कामनाके कारण मनुष्य आवागमनको प्राप्त होता रहता है, संसार-चक्रमें घूमता रहता है ।
ॐ तत्सत् !
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं- क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना- गतागतं कामकामा लभन्ते॥ २१॥
वे उस विशाल स्वर्गलोकके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। इस प्रकार तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मका आश्रय लिये हुए भोगोंकी कामना करनेवाले मनुष्य आवागमनको प्राप्त होते हैं।
व्याख्या—
सकाम अनुष्ठान करनेवाले मनुष्य्के जब स्वर्गके प्रतिबन्धक पाप नष्ट हो जाते हैं, तब वे स्वर्गमें चले जाते हैं । स्वर्गका सुख भोगते-भोगते जब उनके स्वर्गके प्रापक पुण्य नष्ट हो जाते हैं, तब वे पुनः मृत्युलोकमें आ जाते हैं । इस प्रकार कामनाके कारण मनुष्य आवागमनको प्राप्त होता रहता है, संसार-चक्रमें घूमता रहता है ।
ॐ तत्सत् !
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