॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥ १॥
श्रीभगवान् बोले—
यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टिरहित तेरे लिये तो मैं फिर अच्छी तरहसे कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभसे अर्थात् जन्म-मरणरूप संसारसे मुक्त हो जायगा।
व्याख्या—
कर्मयोग (निष्काम भाव) ‘गुह्य’ है, ज्ञानयोग (आत्मज्ञान) ‘गुह्यतर’ है, और भक्तियोग (परमात्मज्ञान) ‘गुह्यतम’ है ।
अपने स्वरूप को जानना ‘ज्ञान’ है और समग्र भगवान्को जानना ‘विज्ञान’ है । समग्र सगुण ही हो सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता, पर सगुणके अन्तर्गत निर्गुण भी आ जाता है ।
सातवें अध्याय से भगवान् विज्ञानसहित ज्ञान का वर्णन कर रहे थे, पर बीचमें अर्जुन के द्वारा सात प्रश्न कर दिये जाने से भगवान् ने आठवें अध्याय में उनका विस्तार से उत्तर दिया । अब भगवान् अपनी ओर से पुनः उस विज्ञानसहित ज्ञान का वर्णन आरम्भ करते हैं ।
ॐ तत्सत् !
श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥ १॥
श्रीभगवान् बोले—
यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टिरहित तेरे लिये तो मैं फिर अच्छी तरहसे कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभसे अर्थात् जन्म-मरणरूप संसारसे मुक्त हो जायगा।
व्याख्या—
कर्मयोग (निष्काम भाव) ‘गुह्य’ है, ज्ञानयोग (आत्मज्ञान) ‘गुह्यतर’ है, और भक्तियोग (परमात्मज्ञान) ‘गुह्यतम’ है ।
अपने स्वरूप को जानना ‘ज्ञान’ है और समग्र भगवान्को जानना ‘विज्ञान’ है । समग्र सगुण ही हो सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता, पर सगुणके अन्तर्गत निर्गुण भी आ जाता है ।
सातवें अध्याय से भगवान् विज्ञानसहित ज्ञान का वर्णन कर रहे थे, पर बीचमें अर्जुन के द्वारा सात प्रश्न कर दिये जाने से भगवान् ने आठवें अध्याय में उनका विस्तार से उत्तर दिया । अब भगवान् अपनी ओर से पुनः उस विज्ञानसहित ज्ञान का वर्णन आरम्भ करते हैं ।
ॐ तत्सत् !
No comments:
Post a Comment