Saturday, 6 May 2017

गीता प्रबोधनी - दसवाँ अध्याय (पोस्ट.२२)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहमेवाक्षयः कालो धाताऽहं विश्वतोमुखः।।३३।।
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।३४।।

अक्षरोंमें अकार और समासोंमें द्वन्द्व समास मैं हूँ। अक्षयकाल अर्थात् कालका भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला धाता भी मैं हूँ।

सब का हरण करने वाली मृत्यु और उत्पन्न होनेवालों का उद्भव मैं हूँ तथा स्त्रीजाति में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ।

ॐ तत्सत् !

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