॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत:।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥ २५॥
यह जो मूढ़ मनुष्यसमुदाय मुझे अज और अविनाशी ठीक तरहसे नहीं जानता (मानता), उन सबके सामने योगमायासे अच्छी तरह ढका हुआ मैं प्रकट नहीं होता।
व्याख्या—
भगवान् अवतारकाल में सबके सामने प्रकट होते हुए भी मूढ़ मनुष्यों को भगवद्रूप से न दीखकर मनुष्यरूप से ही दीखते हैं । मनुष्य अपने भावों के अनुसार ही योगमाया से ढके हुए भगवान् को देखते हैं । भगवान् अलौकिक होते हुए भी योगमाया से ढके रहने के कारण लौकिक प्रतीत होते हैं ।
ॐ तत्सत् !
नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत:।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥ २५॥
यह जो मूढ़ मनुष्यसमुदाय मुझे अज और अविनाशी ठीक तरहसे नहीं जानता (मानता), उन सबके सामने योगमायासे अच्छी तरह ढका हुआ मैं प्रकट नहीं होता।
व्याख्या—
भगवान् अवतारकाल में सबके सामने प्रकट होते हुए भी मूढ़ मनुष्यों को भगवद्रूप से न दीखकर मनुष्यरूप से ही दीखते हैं । मनुष्य अपने भावों के अनुसार ही योगमाया से ढके हुए भगवान् को देखते हैं । भगवान् अलौकिक होते हुए भी योगमाया से ढके रहने के कारण लौकिक प्रतीत होते हैं ।
ॐ तत्सत् !
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