Sunday, 7 May 2017

गीता प्रबोधनी - ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.०५)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।७।।

हे नींदको जीतनेवाले अर्जुन ! मेरे इस शरीरके एक देश में चराचरसहित सम्पूर्ण जगत् को अभी देख ले । इसके सिवाय तू और भी जो कुछ देखना चाहता है ? वह भी देख ले ।

व्याख्या—

भगवान्‌ अपने शरीरके किसी एक अंशमें सम्पूर्ण जगत्‌ देखनेकी आज्ञा देते हैं । इससे सिद्ध होता है कि भगवान्‌ श्रीकृष्ण समग्र हैं और उनके एक अंशमें सम्पूर्ण जगत्‌ (अनन्त ब्रह्माण्ड) है । जब सम्पूर्ण जगत्‌ भगवान्‌के किसी एक अंशमें है, तो फिर भगवान्‌के सिवाय क्या शेष रहा ? सब कुछ भगवान्‌ ही हुए !

ॐ तत्सत् !

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