Friday 9 June 2017

गीता प्रबोधनी सोलहवाँ अध्याय (पोस्ट.२)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥

तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता ।
भवन्ति संपदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥३॥
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ॥४॥

तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर-भाव का न होना और मान को न चाहना; हे भरतवंशी अर्जुन! ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं। 
हे पृथानन्दन! दम्भ करना, घमण्ड करना और अभिमान करना, क्रोध करना तथा कठोरता रखना और अविवेक का होना भी-ये सभी आसुरी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।


ॐ तत्सत् !

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