Friday 9 June 2017

गीता प्रबोधनी सोलहवाँ अध्याय (पोस्ट.६)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥ 

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता: । 
मोहादृगृहीत्वासद्ग्राहान्प्रर्तन्तेऽशुचिव्रता: ॥१०॥  
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: । 
कामोपभोग परमा एतावदिति निश्चिता: ॥११॥  

कभी पूरी न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले तथा अपवित्र व्रत धारण करने वाले मनुष्य मोह के कारण दुराग्रहों को धारण करके (संसार में) विचरते रहते हैं।   
वे मृत्यु पर्यन्त रहने वाली अपार चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, पदार्थों का संग्रह और उनका भोग करने में ही लगे रहने वाले और ‘जो कुछ है, वह इतना ही है’- ऐसा निश्चय करने वाले होते हैं।

ॐ तत्सत् ! 

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